तिजारा की बेटी खैरथल निवासी दिव्या गुप्ता मीरां पत्नी श्री महेंद्र गुप्ता द्वारा रचित कविता, जिसमें देश एवं समाज के कृत्यों एवं बुराइयों से अवगत कराते हुए भारत मां की वेदना को उभारा गया है।
शीर्षक: “भारत मां भी रो पड़ी”
ना पाक दुनिया के, ना साज दुनिया के। बे खौफ दुनिया के, मगरूर दुनिया के। कैसे-कैसे किस्से हैं इस रंगीन दुनिया के।।
कई लाचार हैं खड़े, लाशों के ढेर है पड़े। कई सियासी ताज पहन झूठी शान पर है अड़े।
आतंक की तबाही भी है मेरे जहां में, कैसे-कैसे किस्से हैं, इस रंगीन जहां में।।
कायनात में आने से पहले ही, कयामत कर दी। ऐसा कहा तौबा तौबा, न हो जाए लड़की।
उस मासूम की कराहती आवाज है जहां में, कैसे-कैसे किस्से हैं इस रंगीन जहां में।।
खुद भूखे रह, जिन्होंने सबका पेट है पाला। बहाता रहा पसीना, वह किसान मतवाला।।
मजदूरों की मेहनत से बने हम हुज़ूर ए आला, सूली पर चढ़ते देखा किसी ने नहीं संभाला।।
बेदर्दी भी है शामिल, इस बेदर्द जहां में। कैसे-कैसे किस्से हैं, इस रंगीन जहां में।।
बस आईना दिखाया है, मैंने एक चेहरे को। एक चेहरे को उसमें बसते अनेक चेहरों को।।
गिरगिट से रंग बदलते हैं, लोग जहां में। कैसे-कैसे किस्से हैं, इस रंगीन जहां में।।
कहते हैं हिम्मत ए मर्दा, तो मदद ए खुदा। जिसमें नहीं है जिगरा, वो करेंगे और क्या।।
वो सारे सवालात का, एक ही जवाब खोजते….. बस कर लो आत्महत्या।
दुःख ही दुःख है जीवन में, बाकी सब कुछ है मिथ्या। उन बुजदिलों की, बेवकूफी भी है जहां में।
कैसे-कैसे किस्से हैं इस रंगीन जहां में।।
जिंदा दिली से उठकर, मीरा की कलम चल पड़ी।
इसने भी पूछा…… इतने कलंक की क्यों लगी झड़ी?
जख्म बन ना जाए नासूर, लगा दो अभी जड़ी। यह कहते-कहते….. भारत मां की आंखें भी रो पड़ी।।
क्या रहम दिली भी है, शामिल मेरे जहां में।
कैसे-कैसे किस्से हैं, इस रंगीन जहां में।।